श्री रामेश्वर गहिरा गुरू संस्कृत महाविद्यालय कैलाशनाथ गुफा-सामरबार (जशपुर) छ.ग.



वनवासिायों द्वारा संचालित संस्था “सनातन संत समाज गहिरा“ मुख्यालय-सामरबार जिला जशपुरद्वारा संचालित श्री रामेश्वर गहिरा गुरू संस्कृत महाविद्यालय कैलाश नाथ गुफा सामरबार की स्थापना तपोमूर्ति ब्रह्मलीन संत परम पूज्य श्री रामेश्वर गहिरा गुरूजी महाराज के द्वारा सर्वजन हिताय आदिवासी वनवासी पहाड़ी कोरवाओं एवं निर्धन छात्रों के अमानवीय जीवन को सुधारने हेतु एवं उच्च शिक्शा में गुणवा प्रदान करने के लिए 1 जुलाई सन् 1965 में किया गया। यह महाविद्यालय बगीचा तहसील अन्तर्गत बगीचा से बतौली अम्बि कापुर मार्ग पर बिमड़ा से 4 कि.मी. उार में 23 अंश उारी अक्शांश तथा 23 अंश 37 मि. पूर्वी देशान्तर पर ग्राम सामरबार में स्थित है। यह महाविद्यालय अग्रणी महाविद्यालय शासकीय रामभजन राय एन.ई.एस. स्नातकार महाविद्यालय जशपुर के निर्देशों के अनुपालन सहित पं0 रविशंकर शुक्ल विश्व विद्यालय रायपुर एवं उच्च शिक्शा विभाग छासगढ़ शासन के निर्देशों का पालन करता है। यह महाविद्यालय प्रारंभ में सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी से 1985 तक सम्बद्ध रहा इसके पश्चात् सन् 1985 से 2000 तक अविभाजित मध्यप्रदेश के अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय रीवा से सम्बद्ध रहा। वर्तमान में महाविद्यालय को पं0 रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय रायपुर से स्थाई सम्बद्धता/ मान्यता प्राप्त है।



महाविद्यालय को 1998 से नियमित अनुदान प्राप्त हो रहा है। छसगढ़ का यह एक मात्र प्राच्य संस्व्कृत महाविद्यालय है जहागुरूकूल परम्परा के अनुसार लगभग 90 प्रतिशत आदिवासी विशेश पिछड़ी जनजाति (पहाड़ी कोरवा) पिछड़े वर्ग के छात्र/छात्राएं निःशुल्क शिक्शा ग्रहण कर रहे हैं। जो कि प्रदेश ही नही अपितु राश्ट्र के लिए भी गौरव का विषय है। यह महाविद्यालय जहां एक ओर आदिवासी छात्र/छात्राओं में अमरवाणी संस्कृत के साथ साथ आदर्श नैतिक गुणों का विकास कर रहा है वहीं दूसरी ओर प्रदेश के शिक्शा विभाग में संस्कृत हेतु आरक्शित शिक्शक पदों को पूर्ण कर रहा है। यह उल्लेखनीय है कि नैतकता के ढांचे में ढले ये आदिवासी छात्र/छात्राएं अपने परिवारों में ब्याप्त मांस-मदिरा अन्धविश्वास एवं नक्सलवाद जैसी प्रमुख सामाजिक कुरीतियों को दूर करने में दृढ़ता से सहभागी सिद्ध हो रहे हैं।